ज्योतिषाचार्य पं. मनोज कुमार द्विवेदी के अनुसार धर्मशास्त्रानुसार दीपावली का पर्व प्रदोष काल एवं महानिशिथ काल व्यापनी अमावस्या में मनाया जाता है, जिसमें प्रदोष काल का महत्व गृहस्थों और व्यापारियों के लिए तथा महानिशिथ काल का उपयोग आगमशास्त्र (तांत्रिक ) विधि से पूजन हेतु उपयुक्त होता है।
इस वर्ष दीपावली की तिथि को लेकर लोगों के बीच भ्रम बना हुआ है। दीपावली सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह देवी लक्ष्मी की कृपा पाने का शुभ अवसर है. सही समय पर पूजा करने से समृद्धि, शांति और कल्याण की प्राप्ति होती है। दीपावली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को मनाया जाता है।
इस वर्ष, संवत 2081 के अनुसार, अमावस्या 31 अक्टूबर 2024 को दिन में 3:53 बजे से प्रारंभ होकर 1 नवंबर 2024 को शाम 6:16 बजे समाप्त होगी। दीपावली के पूजन में धर्मशास्त्रीय मान्यतानुसार प्रदोष काल एवं महानिशिथ काल मुख्य है।
31 अक्टूबर गुरुवार को धर्मशास्त्रोक्त प्रदोष काल शाम 5 बजकर 18 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 52 मिनट तक रहेगा। इसमें स्थिर लग्न वृष का समावेश शाम 6 बजकर 7 मिनट से 8 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। अमृत की चौघड़िया शाम 5 बजकर 27 मिनट से 7 बजकर 3 मिनट तक तत्पश्चात चर चौघड़िया की वेला 7 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 40 मिनट तक रहेगी।
इस समायावधि में 1 घंटा 45 मिनट का समय अमावस्या, प्रदोष काल, वृष लग्न और अमृत चौघड़िया का पूर्ण संयोग बनेगा। इसके बाद महानिशिथ काल रात्रि 11 बजकर 15 मिनट से रात्रि 12 बजकर 6 मिनट तक रहेगा।इस समयावधि में अमावस्या और महानिशिथ काल का पूर्ण संयोग रहेगा। उल्लेखनीय है कि दीपावली में महानिशिथ काल अति महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बाद रात्रि 12 बजकर 35 से रात्रि 2 बजकर 49 मिनट तक स्थिर सिंह लग्न रहेगी।इस समयावधि में अमावस्या और सिंह लग्न का पूर्ण संयोग बनेगा।
इस प्रकार 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को अमावस्या रात्रि पर्यन्त रहेगी और उपरोक्त शुभ योगों का समावेश रहेगा।
अब 1 नवंबर शुक्रवार की स्थिति का विश्लेषण देखिए,इस वर्ष 1नंवबर शुक्रवार के दिन सूर्योदय से शाम 6 बजकर 16 मिनट तक अमावस्या तिथि रहेगी, तत्पश्चात कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा प्रारंभ हो जायेगी।
1 नंवबर 2024 शुक्रवार को अमावस्या के दिन धर्मशास्त्रोक्त प्रदोष काल शाम 5 बजकर 17 मिनट से 7 बजकर 19 मिनट मिनट तक रहेगा। इसमें स्थिर लग्न वृष का समावेश शाम 6 बजकर 38 मिनट से 8 बजकर 35 तक रहेगा।
रोग (अशुभ) चौघड़िया शाम 5 बजकर 17 मिनट से 6 बजकर 49 मिनट तक, तत्पश्चात काल (अशुभ) चौघड़िया की वेला शाम 6 बजकर 49 मिनट से 8 बजकर 21 मिनट तक रहेगी।
यहां ध्यान देने योग्य विशेष तथ्य है कि 1 नवंबर को अमावस्या तिथि सूर्यास्त के बाद कुल 50 मिनट रहेगी, उसके बाद शुक्ल पक्ष प्रतिपदा लगेगी, उसमें भी स्थिर लग्न वृष 6 बजकर 38 से लगेगी और 6 बजकर 16 मिनट पर अमावस्या समाप्त हो जायेगी। जिसके कारण पूजन में वृष लग्न का समय प्राप्त नहीं होगा, इसके साथ ही रोग और काल चौघड़िया का अशुभ समय विद्यमान रहेगा।
1 नंवबर को महानिशिथ काल एवं सिंह लग्न के समय अमावस्या तिथि का अभाव रहेगा।उस समय कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि हो जायेगी। दीपावली रात्रि का त्योहार है और इसका मुख्य पूजन रात्रि में अमावस्या के समय किया जाता है।अमावस्या की तिथि में प्रदोष काल का विशेष महत्व होता है।
प्रदोष काल वह समय है जब सूर्यास्त के बाद लगभग दो घंटे 24 मिनट तक की अवधि होती है। शास्त्रों के अनुसार, जिस दिन अमावस्या प्रदोष काल और महानिशिथ काल में व्याप्त होती है, उसी दिन दीपावली का पर्व मनाना चाहिए।
31 अक्टूबर को अमावस्या की शुरुआत दोपहर में हो रही है, जो पूरी रात तक रहेगी, वहीं, 1 नवंबर को सूर्यास्त के बाद अमावस्या समाप्त हो जाएगी। प्रदोष और अर्धरात्रि व्यापनी मुख्य है,इसलिए दीपावली 31 को मनाई जाएगी।
इसके साथ ही धनतेरस का पर्व 29 अक्टूबर को, नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) 30 अक्टूबर, दीपावली का महापर्व 31 अक्टूबर, 1 नंवबर को स्नान दान की अमावस्या, 2 नवंबर को गोर्वधन पूजा और 3 नवंबर को भाई दूज का पर्व मनाया जायेगा।