हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कानपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. हरिदत्त नेमी के निलंबन को गलत बताते हुए रोक लगा दी है। योगी सरकार ने कानपुर में सीएमओ डॉ. नेमी और जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह के बीच हुए विवाद के बाद निलंबित कर दिया था। न्यायालय ने डॉ. नेमी को अंतरिम राहत देते हुए, राज्य सरकार को चार सप्ताह में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का भी आदेश दिया है। न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने डॉ. नेमी द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया।

सीएमओ ने 19 जून 2025 के निलंबन आदेश को याचिका के जरिए चुनौती दी थी। उनके अधिवक्ता डॉ. एलपी मिश्रा की दलील थी कि बिना कोई जांच शुरू किए निलंबित कर दिया गया। यह भी तर्क दिया गया कि सीएमओ पर जो आरोप लगा हैं उनमें मेजर पेनाल्टी (बड़ी सजा) की गुंजाइश नहीं है। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन और अपील) नियम 1999 के अनुसार निलंबित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। न्यायालय ने सीएमओ की ओर से दी गई दलील को प्रथम दृष्टया सही पाते हुए, अग्रिम आदेशों तक निलंबन आदेश को स्थगित कर दिया।

 

कानपुर में सीएमओ औऱ डीएम का विवाद पिछले दिनों प्रदेश में सुर्खियां बना था। यहां तक कि कानपुर के कई भाजपा विधायक सीएमओ और डीएम के पक्ष में बंट गए थे। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष खुलकर सीएमओ के पक्ष में थे। इसके बाद भी सीएमओ की नहीं सुनी गई और उन्हें निलंबित कर दिया गया। इसे डीएम की शासन तक पकड़ और बड़ी जीत के रूप में देखा गया। इसके बाद सीएमओ ने प्रेस कांफ्रेंस की और डीएम पर आरोपों की बौछार कर दी थी।

कहा कि डीएम भ्रष्टाचार में शामिल होने का दबाव बना रहे थे। उनकी न सुनने पर बैठक में अपमानित किया। डॉ. नेमी ने डीएम को भ्रष्टाचार में लिप्त स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मदद करने का आरोप लगाया था। यह भी कहा कि डीएम उन पर भी लगातार साथ देने और सिस्टम में आने का दबाव दे रहे थे। सीएमओ ने खुलकर कहा कि डीएम मुझसे वसूली चाह रहे थे।

 

 

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